हम नासिका से प्राणवायु आक्सीजन के (व्2द्ध लेते है। यह शरीर में 10 भागों में विभक्त हो जाती है। जिनमें पाँच मुख्य भाग एवं पाँच उपभाग होते हैं।
पाँच मुख्य प्राणः प्राण, समान, अपान, उदान, व्यान।
प्राणः कंठ से हृदय तक जो प्राणवायु कार्य करता है उसे प्राण कहते हैं। यह प्राण नसिका मार्ग, कंठ, स्वर तंत्र, फेफड़े व हृदय को क्रियाषील व शक्ति प्रदान करता है।
समानः हृदय के नीचे से लेकर नाभि पर्यन्त शरीर में क्रियाषील प्राण को ‘समान’ कहते हैं। यह प्राण किड़नी, आंत, प्लीहा
(तिल्ली),
लीवर,
पेन क्रियाण, अग्नाषय सभी की कार्यप्रणाली को नियंत्रित करता है।
अपानः नाभि से लेकर पैर के अंगूठे तक जो प्राण क्रियाषील रहता है। उसे ‘अपान’ कहते हैं।
उदानः कंठ के ऊपर से सिर तक जो प्राण क्रियाषील रहता उसे ‘उदान’ कहते हैं। यह नेत्र, नसिका, मुखमंड़ल, कान, पिच्युटरी व पिनियल ग्लेण्ड सहित पूरे मस्तिष्क को क्रियाषील बनाता है।
व्यानः यह प्राणषक्ति पूरे शरीर में व्याप्त होकर शरीर की समस्त गतिविधियों को नियमित एवं नियंत्रित करती है। सभी अंगों, मांसपेषियों,
नस-नाड़ियों एवं सन्धियों को क्रियाषीलता एवं शक्ति यहीं ‘व्यान प्राण’ प्रदान करता है।
पाँच उपप्राण: देवदत्त,
नाग,
कूर्म,
कंृकल,
धनंजय।
इनके कार्य क्रमषः छींकना, पलक झपकाना, खुजलाना,
जम्हाई लेना एवं हिचकी लेना होता है।
प्राण का मुख्य कार्य: आहार का यथावत परिपाक करना, शरीर में रसों को समभाव से विभक्त करना, देह इन्द्रियों को तर्पण करना एवं रक्त के साथ मिलकर देह में सर्वत्र घूम-घूमकर मलों का निष्कासन करना।
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