7. प्रणव प्राणायाम- सांसों पर ध्यान, आप साक्षी बनकर, द्रष्टा बनकर अपने श्वास पर तथा नासिका के अग्रभाग पर ध्यान रखना। श्वास धीरे-धीरे कम होती है। उसकी ध्वनि कम हो रही है। उसका नासिका में स्पर्ष कम हो रहा है। सांसों की गति मंद हो रही है। ऐसा लगता है कि सांसें थम सी गयी हैं। इसी को कहते हैं सत्, चित्त आनंद स्वरुप ब्रह्म रुप में एकरुप होना और समाधि के दिव्य आनंद को प्राप्त करना। सोते समय यह ध्यान करने से योगमय निद्रा होगी। स्वप्नों से छुटकारा, अच्छी निद्रा और शांत निद्रा आयेगी।
-योग से समाज शुद्ध-बुद्ध बनेगा-
आँसू पोंछते-पोंछते समाज तैयार है समाधान ढूंढने के लिए और वह होगा स्थायी समाधान क्योंकि अब तो बहुत हो गया।
मनुष्य समाज अर्थात् पुरुष-महिला नहीं, प्रसंगानुसार महिला-पुरुष का भी क्रम माना जाये क्योंकि यह क्रम तो पहले से ही है- सीताराम, राधे-ष्याम। न कोई प्रथम, न कोई द्वितीय क्योंकि मनुष्य एक इकाई है, जिसमें जीवात्मा मन और शरीर का संगठन है। मन और शरीर आत्मा के लिए काम करते हैं।
बात केवल इतनी है कि देह को महत्व दे दिया तो जीवन भोग प्रधान्य हो गया। आत्मानुषासन टूट गया। आत्मविमुख मन भोग में डूबता जा रहा है। अज्ञान का अंधेरा संस्कारों की दुर्बलता भटकाने वाले वातावरण में मििहला-पुरुष सहमति से भी काम-वासन, भाग में उलझ रहे हैं। इससे पतन सुनिष्चित हो रहा है। कुछ कामांध पुरुष बलात्कार कर सर्वनाष ला रहे हैं। चारों ओर दुष्कर्म की चीत्कारें डरा रही हैं। ऐसे में, महिला
(पीड़ित वर्ग) को क्या करना चाहिए यह भी विचारणीय है। अनेक कारणों व कुछ विषम परिस्थितियों से महिलाएं कायरता की ओर उत्तरोत्तर ढकेली गई। यह सहमी हुई, असहाय, डर में रहने की अभ्यस्त सी हो गई हैं। अन्याय सहना, सहनषीलता में गिना जाने लगा। महिला स्वयं भी सहती हैं व बहन, बेटी, बहू को भी सहने के लिए प्रेरित करती हैं पहले स्वयं सुरक्षित हों फिर दूसरे सुरक्षित होंगे। माँ के रुप में प्रत्येक महिला को यह समझना होगा कि कभी भी डरी-सहमी माँ वीर और स्वस्थ संतान को जन्म नहीं दे सकती। दबाई गई, डराई गई माताओं की कोख से आतंकवादी जन्म लेते हैं। समाजषास्त्र के शोध से भी यह बात सामने आई है। प्रत्येक महिला को आस-पड़ोस में, कार्यालय में, रास्ते में, दूसरी महिला, बेटी पर हो रहे अन्याय पर नजर रखनी होगी, दखल भी देना होगा। समस्या आने पर नजर रखनी होगी, दखल भी देना होगा। समस्या आने पर आस-पास से सहायता लेने में संकोच भी नहीं करना चाहिए। कोई बच्ची इसे लाजवष छिपाये भी नहीं।
सामूहिक दुष्कर्म की इस घटना ने मानो घनीभूत पीड़ा को बाहर निकाला है। अब वातावरण संवेदनषील हो रहा है। मजा का परिणाम सजा। मजा है क्या? इन बातों को समझकर समाज की चेतना जागेगी। हमउ च्च चेतना की ओर बढे़ंगे। हर नागरिक पुरुष भी और महिला भी, युवती और युवक भी पहरेदार बनेगा। जब सब समस्याएं मन की सोच से शुरु होती हैं तो मन की साधना की एकमात्र मार्ग हैं समाधान का। मन को शुभसंकल्प वाला बनाने का मार्ग है -‘योग’।
जन-जन को रोगग्रस्त देखकर गुरुओं ने प्राणायाम-योगासन का एक पैकेज तय कर प्रचारित किया। अब तो योग से निरोग होने पर कोई संषय नहीं रहा है। उसी तरह, मन, प्राण शरीर सदा एक-दूसरे से प्रभावित रहते हैं। श्रद्धा, विष्वास से प्राणायामक रने पर मन शुभ संकल्प वाला बनेगा। स्वामी जी कहते हैं - “व्याधि तो बहाना है समाधि तब जाना है।” प्रभु करे यह घटना योग की तरफ संकल्प से मुड़ने का हेतु बन जाये। योग से समाज शुद्ध-बुद्ध होता जाये तथा देष फिर से ऋषियों का देष बन जाये।
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