1. ध्यान मुद्रा: हाथों के अंगूठों से तर्जनी अंगुलियों के अग्रभागों को मिलाना बाकी सभी अंगुलियाँ सीधी रखें। इसे ज्ञान मुद्रा/ योग मुद्रा भी कहते हैं।
लाभ: एकाग्रता व स्मरण शक्ति बढ़ती है। क्रोध का नाष, अनिद्रा, तनाव, सिरदर्द दूर होता है।
2. वायु मुद्रा: तर्जनी अंगुली को अंगूठे के मूल में लगाना व अंगूठे से हल्का सा दबाना, बाकी अंगुलियों को सीधी रखें।
लाभ: वायु विकारों, गठिया,
घुटनों का दर्द, पक्षाघात, कम्पवात, गर्दन व रीढ़ के दर्द में लाभकारी।
3. शून्य मुद्रा: मध्यमा अंगुली को अंगूठे के मूल में लगाना व अंगूठे से हल्का सा दबाना, शेष अंगुलियाँ सीधी रखें।
लाभ: कान के रोग, हृदय रोग, मसूड़ों व गले के रोगों में लाभकारी।
4. पृथ्वी मुद्रा: अनामिका व अंगूठे के अग्रभागों को मिलाना, शेष अंगुलियाँ सीधी रखें।
लाभ: शारीरिक दुर्बलता, पाचन शक्ति व विटामिनों की कमी को दूर करता है।
5. वरुण मुद्रा: कनिष्ठा व अंगूठे के अग्रभागों को मिलाना।
लाभ: रक्तविकार, मुहासों तथा जल तत्व की कमी को दूर करता है। चेहरा सुन्दर बनाता है।
6. प्राण मुद्रा: कनिष्ठा व अनामिका दोनों के अग्रभागों को एकसाथ अंगूठे के अग्रभाग से मिलना।
7. अपान मुद्रा: मध्यमा व अनामिका के अग्रभागों को एक साथ अंगूठे के अग्रभाग से मिलाना।
लाभ: अपान वायु, कब्ज, बवासीर आदि में लाभकारी।
No comments:
Post a Comment