विधि: दोनों हाथ उठाकर तीन अंगुलियों को अनामिका को ललाट पर और अंगूठे से कान के ठक्कन को बंद करते हुए, फेफड़ों में सांस भरकर नासिका द्वारा भँवरे की तरह ओम का गुंजन करते हुए सांस को धीमी गति से बाहर छोडें़।
समय: मन में यह पवित्र संकल्प हो कि आज्ञाचक्र में ईष्वर प्रगट हो रहे हैं। चिंतन करें कि हे ईष्वर मुझे अपने शरण में ले लो। ठीक उसी तरह प्रभु को पुकारे जैसे नन्हा बालक अपने माँ को पुकारता है जैसे माता अपने बालक को रोते नहीं देख सकती ठीक उसी तरह वह दयालु और कृपालु परमपिता परमेष्वर अपने पुत्र एवं पुत्रियों को दुःखी नहीं देख पायेंगे और स्वयं आपको अपने पास ले लेंगे ऐसे संपूर्ण समर्पण के साथ भ्रामरी प्राणायाम करें।
लाभ: इस प्राणायाम से मन में उत्तेजना, तनाव, हाई बी.पी. आदि में लाभ होता है। मन शांत होता है। इस प्राणायाम से अपनी चेतना को परम चेतना से जोड़ते हैं। अपना समस्त अज्ञान मिटाकर ज्ञान प्राप्त होता है। इससे ध्यान लगता है। अनिद्रा में लाभ होता है।
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