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Wednesday, August 5, 2015

संस्कारों के करने का विधान व उपयुक्त समय

गर्भाधान संस्कारः सन्तानोत्पत्ति का विचार पति-पत्नी के मन में आने पर वे पूर्ण रूप से निणय करे कि हमें इस देष को कैसी संतान देनी हैं। जब यह निर्णय हो कर लें तो संकल्पबद्ध होकर उसी तरह का खान-पान, स्वाध्याय घर में उसी प्रकार के महापुरुषों के चित्र भी लगायें। जैसे हमें संतान को महापुरुष बनाना है तो महापुरुषों  के जीवन का अध्ययन, उसी तरह का सात्विक खान-पान महापुरुषों के चित्रों को घर में लगावें। फिर जब हमारे आचार, विचार, व्यवहार महापुरुषों की श्रेणी का हो जावें तो पति-पत्नी बच्चे का बीजारोपण करें। महिला के गर्भस्थ हो जाने के उपरान्त भी वैसा ही आचार-विचार, खान-पान करते रहें।
पुंसवन संस्कारः स्त्री के गर्भ ठहरने के 3 माह उपरान्त यह संस्कार होता है जो महर्षि दयानन्द की संस्कार चन्द्रिका में दिया गया है, उसे आचार्य को घर बुलाकर यह संस्कार करावें।
सीमन्तोनयन संस्कारः स्त्री के गर्भ ठहरने के 7 माह पष्चात् आठवें मास के प्रारम्भ में यह संस्कार किया जाता है इसे भी घर पर आचार्य को बुलाकर सभी परिजनों के बीच किया जाता है।
जातकर्म संस्कारः बच्चे के जन्म होने पर बच्चे को नहलाकर उसे नये कपड़े पहनाकर बच्चे की जीभ पर साने/चांदी की सलाई से पिता शहद से 3म् लिखता है तथा बच्चे के कान में तीन बार 3म् शब्द बोलता है।
नामकरण संस्कारः जन्म के 11 वें दिन बच्चे के सार्थक नाम रखा जाता है।
निष्क्रमण संस्कारः  बच्चा जहाँ पैदा होता है, वह स्थान दूषित हो जाता है। अतः वहाँ ये जच्चा-बच्चा दोनों को निकालकर दूसरे स्थान में षिफ्ट किया जाता है जिसे सूरज पूजन या बाहर निकालना आदि द्वारा भी हम करते है।
अन्नाप्रासन संसकारः जब बच्चा 6 माह का हो जावे तो उसे अन्न (दलिया/खिचड़ी) आदि खिलाना प्रारम्भ करते हैं।
चूड़ाकर्म (मुण्डन संस्कार) बच्चे का पहले वर्ष या तीसरे वर्ष में मुण्डन संस्कार करवाना आवष्यक हैै। गर्भ से बच्चे के जो बाल आते हैं उन्हें एक बार सम्पूर्ण रूप से साफ करवाना आवष्यक है। चाहे वह लड़का हो या लड़की। मुण्डन के उपरान्त बच्चे के सिर पर मलाई हल्दी मिलाकर कई दिनों तक लगाने से बाल अच्छे आते हैं।
कर्णवेध संस्कारः बच्चे के एक बार कान अवष्य छिदवाने चाहिए जिससे हम कान छेदन भी कहते हैं।
उपनयन संस्कारः  इसे यज्ञोपवीत या जनेऊ संस्कार भी कहते हैं। पाँच वर्ष की उम्र पूर्ण होन पर बच्चे के विद्यारम्भ करने से पूर्व यह संस्कार करवाया जाता है।
वेदारम्भ संस्कारः जब बच्चा 5 वर्ष का होकर 6 वें साल में प्रवेष करे तो उसे विद्याध्ययन हेतु गुरु के यहाँ गुरुकुल में भेजा जाता है। वहाँ पुनः एक बार उसका यज्ञोपवीत संस्कार किया जाता है। यज्ञोपवीत विद्यार्थी का विद्याध्ययन हेतु आभूषण माना जाता है। इसी संस्कार के बाद व्यक्ति को द्विज माना जाता है यानि उसका दूसरा जन्म होना।
समावर्तन संस्कारः  गुरुकुल में 24 वर्ष की अवस्था में बच्चे की षिक्षा पूर्ण होने पर समावर्तन संस्कार किया जाता है। षिक्षा पूर्ण होने पर 25 वें वर्ष के प्रारम्भ में बालक घर जाता है।
विवाह संस्कारः 25 वर्ष की अवस्था मंे लड़का 18 वर्ष की अवस्था में लड़की का विवाह करना वैदिक विधान से सही माना जाता है। इससे कम उम्र के बच्चों का विवाह करें इससे अधिक उम्र में करें तो उत्तम होता है।
वानप्रस्थ आश्रमः 25 से 50 वर्ष की उम्र तक ग्रहस्थी का सुख भोगने के बाद अपनी जिम्मेदारियों (बच्चों की शादी वगैरह) से मुक्त होकर मनुष्य को वानप्रस्थ में प्रवेष करना चाहिए। वानप्रस्थ में व्यक्ति सफेद वस्त्र धारण  करके चाहे तो घर पर ही या अन्यत्र किसी आश्रम या कुटिया बनाकर या तो अकेला या पत्नी को साथ रख सकता है। इस 50 से 75 वर्ष की अवस्था में मनुष्य स्वयं ज्ञान प्राप्त करते हुए दूसरों को सन्मार्ग में दीक्षित करने का प्रयास करता है।
संन्यास आश्रमः जब व्यक्ति 75 वर्ष की उम्र को प्राप्त कर ले तब पत्नी को घर पर ही बच्चों के साथ छोड़कर पूर्ण वैराग्य धारण करके परोपकार के लिए स्थान-स्थान भ्रमण करते हुए अपने ज्ञान से लोगों को सदमार्ग में प्रेरित करता रहे।
अंत्येष्टि संस्कारः व्यक्ति की मृत्यु के उपरान्त यह संस्कार किया जाता है। व्यक्ति के मरने के उपरान्त उसके शरीर को शमषान में अग्नि को समर्पित एक वृहद् यज्ञ करके किया जाता है। इस यज्ञ में कम से कम 25 किलो हवन सामग्री 10 किलो शुद्ध घी का आवष्यक रूप से उपयोग करना चाहिए अन्यथा व्यक्ति के शरीर के जलने से बहुत प्रदूषण फैलता है जिसका पाप हमें लगता है।

इस प्रकार तीन संस्कार व्यक्ति  के जन्म के पूर्व एक जन्म के बाद होता है बाकी 12 संस्कारों में व्यक्ति खुद साक्षी होता है।

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