योग भारत वर्ष की संस्कृति एवं मुनियों द्वारा प्रतिपादित प्राचीन परंपरा है। इस परम्परा को हम समय के साथ भूल गये थे। आओ इस योग विज्ञान जो आयुर्विज्ञान है और जीने की सही राह बताता है, उसे अपनातें हैं। महर्षि पतंजलि ने योग सूत्रों में अष्टांग योग का वर्णन किया है। योग का अर्थ है जोड़ना और आध्यात्मिक अर्थ है आत्मा को परमात्मा से जोड़ना। महर्षि पतंजलि कहते हैं “योगष्चित्तवृत्तिनिरोधः अर्थात् चंचल मन को स्थिर करना ही योग है।”
महर्षि व्यास जी कहते हैं “योगः कर्मषु कौशलम्” अपने कर्म को कुषलतापूर्वक कार्यान्वित करना ही योग है। भगवान कृष्ण कहते हैं कि सभी अवस्थाओं में (सुख-दुःख, जय-पराजय, सफल-असफल, सिद्धी-असिद्धी, अनुकूलता-प्रतिकूलता) में आत्मस्थ एवं समभाव में रहना ही योग है।
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